breaking news

वर्ल्ड कप के पहले मेच में सहवाग के 175 रनों की पारी कोहली की सेंचुरी, सहवाग ने तोडा 1983 के कपिल देव का रिकॉर्ड

शनिवार, 13 फ़रवरी 2010

पहले शुद्धिकरण फिर पदग्रहण

रतलाम। रतलाम जनपद की ग्राम पंचायत सेजावता में सरपंच, उपसरपंच और पंचों ने पदभार ग्रहण करने से पहले यज्ञ, अनुष्ठान और पंचायत का शुद्धिकरण किया। सभी ने यज्ञ में आहुतियां दीं और इसके बाद पद और गोपनीयता की शपथ ली।

सेजावता सरपंच पद इस बार पिछड़ा वर्ग पुरूष के लिए आरक्षित था। यहां मदनलाल धाकड़ ने चुनाव जीता। जीतने के बाद 11 फरवरी को पहले सम्मेलन से इनका कार्यकाल पूरा हो गया, लेकिन कुर्सी संभालने के पहले उन्हें पूर्व के सरपंचों के कार्यकाल की याद आई तो कुछ वरिष्ठ ग्रामीणों से चर्चा की कि क्या किया जाए। गांव के पूर्व उपसरपंच जसवंत गिरी गोस्वामी सहित अन्य ने सलाह दी कि अनुष्ठान, हवन करने के बाद पदभार ग्रहण करें ताकि शुद्धि हो जाए और कार्यकाल निर्विघ्न पूरा हो। धाकड़ ने इस सलाह पर अमल किया और गुरूवार दोपहर अनुष्ठान और हवन का समय तय किया। पंडित के सान्निध्य में हवन, पूजन, अनुष्ठान हुआ और सरपंच धाकड़, उपसरपंच टीकमसिंह पंवार के साथ गांव के 20 पंचों ने आहुतियां दीं। इसके बाद शपथ ग्रहण की गई।

इसलिए किया शुद्धिकरण
ग्राम पंचायत सेजावता में सरपंच, उपसरपंच और पंचों को शुद्धिकरण के बाद पदभार ग्रहण करने की आखिर जरूरत क्यों पड़ी। इसके पीछे बड़ा कारण ग्रामीण मानते हैं। उनके अनुसार इस ग्राम पंचायत में कुछ ऎसा हुआ है कि एक को छोड़कर जितने भी सरपंच बने हैं, वे कार्यकाल पूरा तक नहीं कर पाए। सभी को आर्थिक अनियमितता के चलते पद से हाथ धोना पड़ा है। ग्रामीणों का मानना है कि गांव के सरपंच की कुर्सी ऎसी है कि यहां जो भी आया वह किसी न किसी घोटाले में फंसा है, इसलिए इस बार ऎसा किया गया।

तीन साल में पांच
ग्राम पंचायत अब तक के तीन कार्यकाल में पांच सरपंच देख चुकी है। 2010 से छठे सरपंच का कार्यकाल प्रारंभ हुआ है। 1994 से 1999 तक दो, 1999 से 2004 तक दो और 2004 से 2010 तक एक सरपंच यहां रहे हैं। सभी पर आर्थिक अनियमितताओं के प्रकरण चले। चार ने पद गंवा दिए, जबकि पांचवें सरपंच ने कार्यकाल जैसे-तैसे पूरा किया। जिस एक सरपंच ने कार्यकाल पूरा किया है उस पर भी कुछ ऎसा ही प्रकरण चल रहा है, जिसका निराकरण अभी होना है।

अब तक के सरपंच
1994 में रंभाबाई चुनाव जीतीं और सरपंच बनीं, लेकिन ढाई वर्ष बाद ही उन पर पंचायत राज अधिनियम की धारा 40 की कार्रवाई हुई और पद से हटना पड़ा। उपचुनाव में रेशमबाई चुनाव जीतीं। अन्य पंचायतों के साथ इनका कार्यकाल पूरा होता उसके पहले ही इन पर भी आर्थिक अनियमितता का प्रकरण दर्ज हो गया और इन्हें जेल जाना पड़ा। 1999 में चुनाव हुए तो हीरालाल परमार सरपंच बने। ढाई वर्ष तक सरपंच रहने के बाद इंदिरा कुटीर अपने ही परिवार में देने के मामले में इन पर भी धारा 40 की तलवार लटकी और पद से हाथ धोना पड़ा। उपचुनाव में शंकरलाल मालवीय सरपंच बने तो ये भी ढाई लाख रूपए के गबन के मामले में फंस गए। इनके केस का निपटारा अभी नहीं हुआ है। 2004 में दुर्गाबाई सरपंच बनीं। इन्होंने अब तक कार्यकाल तो पूरा किया, लेकिन इन पर भी आर्थिक अनियमितता का प्रकरण चल रहा है। इसमें निर्णय आना शेष है। अब मदनलाल धाकड़ सरपंच बने हैं।

कमलसिंह/ अरविंद गोस्वामी