दिल मे मेरे, बसने वाला किसी दोस्त का प्यार चाहिए, ना दुआ, ना खुदा, ना हाथों मे कोई तलवार चाहिए, मुसीबत मे किसी एक प्यारे साथी का हाथों मे हाथ चाहिए, कहूँ ना मै कुछ, समझ जाए वो सब कुछ, दिल मे उस के, अपने लिए ऐसे जज़्बात चाहिए, उस दोस्त के चोट लगने पर हम भी दो आँसू बहाने का हक़ रखें, और हमारे उन आँसुओं को पोंछने वाला उसी का रूमाल चाहिए, मैं तो तैयार हूँ हर तूफान को तैर कर पार करने के लिए, बस साहिल पर इन्तज़ार करता हुआ एक सच्चा दिलदार चाहिए, उलझ सी जाती है ज़िन्दगी की किश्ती दुनिया की बीच मँझदार मे, इस भँवर से पार उतारने के लिए किसी के नाम की पतवार चाहिए, अकेले कोई भी सफर काटना मुश्किल हो जाता है, मुझे भी इस लम्बे रास्ते पर एक अदद हमसफर चाहिए, यूँ तो 'मित्र' का तमग़ा अपने नाम के साथ लगा कर घूमता हूँ, पर कोई, जो कहे सच्चे मन से अपना दोस्त, ऐसा एक दोस्त चाहिए...
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शनिवार, 18 अप्रैल 2009
बुधवार, 15 अप्रैल 2009
माय एल्बम
तीतली रानी तीतली रानी...
तितली का सारा सौंदर्य उसके पंखों में है। यदि पंखों को अलग कर दिया
जाए, तो तितली भी एक भद्दे, गिलगिले पतंगे के सिवाय कुछ नहीं। लेकिन तितलियों के पंख देखकर, सभी का मन उन्हें पकड़ लेने को करता है। कुछ के पंख, नीले, पीले ऑरेंज और लाल जैसे चमकीले रंगों के होते हैं, तो कुछ के पंखों की बनावट अनोखी होती है।
तितली का सारा सौंदर्य उसके पंखों में है। यदि पंखों को अलग कर दिया

मंगलवार, 14 अप्रैल 2009
पारस सकलेचा का पुतला जलाया
रतलाम विधायक पारस सकलेचा ने निर्दलीय विधानसभा चुनाव लड़ते हुए पुर्व गृहमंत्री हिम्मत कोठारी को 31 हजार मतो से हराकर जीत हासिल करी थी। इस जीत मे रतलाम के अल्पसंख्यक वर्ग (जो की कांग्रेस को वोट बैंक था)ने खुलकर मतदान पारस सकलेचा के पक्ष मे किया था जिसकी वजह से पारस सकलेचा की जीत हुई वहीं कांग्रेस को मात्र 4500 वोट मिलने पर वह अपनी जमानत भी नही बचा पाई थी। उन्ही अल्पसंख्यक वर्ग के लोगो ने पारस सकलेचा के द्वारा लोकसभा चुनाव मे भाजपा को समर्थन देने पर पुरे रतलाम शहर मे जगह जगह पुतला फुंककर अपना विरोध जताया था।
रिपोर्टर नरेन्द्र जोशी (रिपोर्टर रतलाम)
केमरा परसन-- अरविन्द गौस्वामी
वाईस आफ इंडीया रतलाम
रिपोर्टर नरेन्द्र जोशी (रिपोर्टर रतलाम)
केमरा परसन-- अरविन्द गौस्वामी
वाईस आफ इंडीया रतलाम

क्यूं कहते हो मेरे साथ कुछ भी बेहतर नही होता,
सच ये है के जैसा चाहो वैसा नही होता...
कोई सह लेता है कोई कह लेता है,
क्यूँकी ग़म कभी ज़िंदगी से बढ़ कर नही होता...
आज अपनो ने ही सीखा दिया हमे,
यहाँ ठोकर देने वाला हैर पत्थर नही होता...
क्यूं ज़िंदगी की मुश्क़िलो से हारे बैठे हो,
इसके बिना कोई मंज़िल, कोई सफ़र नही होता...
कोई तेरे साथ नही है तो भी ग़म ना कर,
ख़ुद से बढ़ कर दुनिया में कोई हमसफ़र नही होता....."
सोमवार, 13 अप्रैल 2009
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